Literature
दु:ख का दुख  

काला क्यों मुंह किया मेरा
मैं भी तो हूं साथी तेरा
हूं न मैं तो न दिखे दोस्त का चेहरा
सुख का भी सुख न मिले जो न हो मेरा पहरा

ईश को भी मैं ही मिलवाता
फिर क्यों तोड़ना चाहते नाता
सुख तो सब याद भुलाता
मैं ही सही बस राह दिखाता

सुख की धुन पर सभी थिरकते
जीवन जीते गिरते पड़ते
राह सही न कभी पा सकते
न मेरी ठोकर खा कर जो गिरते

 

आंख से पर्दा मैने हटाया
मुझको झट तूने बिसराया
सुख भी तो है आया जाया
मुझको फिर क्यों काला बतलाया

काली तो हर रात भी होती
रात न होती नींद भी न होती
उजले सवेरे की फिर बिसात क्या होती
सारा दिन काम करने की औकात न होती

काला सही पर बुरा नहीं मैं
सुख राधा है तो श्याम हूं मैं
धवल कागज की शान हूं मैं
कोरे कागज की जान हूं मैं

जीवन का यह मर्म तुम जानो
मुझको अपना साथी तुम मानो
मैं अच्छा मैं ही सच्चा पहचानो
रहो साथ कहाओ  सयानो