सम्‍पादकीय

प्रिय सदस्यों

अभिवादन

१५ माह के अन्तराल के बाद आप से मुखातिब हूँ। हर्ष महसूस हो रहा है। आशा है आप सभी मेरी तरह सकुशल होंगे।इस न्यूज लेटर का ई संस्करण ही अब आपको प्राप्त हुआ करेगा। यह जिम्मेदारी मुझे दी गयी है और एक बार फिर मुझे आशा है मैं आपकी आशाओं पर खरा उतरने का पूरा प्रयास कर सकूँगा।मुझे संदेह नहीं कि मैं एक बार पुन: आपका स्‍नेह अर्जित कर सकूँगा।
मुझे पुन: आप सबका सहयोग चाहिए।आपके सुझाव,रचनाएँ,समाचार और आलोचनाओं के बिना मेरा कर्तव्य पूरा नहीं हो सकता विशेष कर आलोचना के बिना तो बिल्कुल भी नहीं। इस इ संस्करण की पहुंच आप तक अथवा आपके साथी तक ई मेल द्वारा ही हो सकेगी।अत: आप से अनुरोध है कि उनके इ मेल पते हमें शीघ्र भेजने का कष्ट करें।
यह आपकी एसोसिएशन है और आप ही का न्यूज लेटर भी।
मैं माध्यम हूँ ।

 

सरकार और हम
जिस सरकार की अपनी स्वास्थ्य सेवायें बुरी तरह से नाकाम रही हों और जिसके घोटाले निपट नहीं पा रहे हों वह पहले से उच्च गुणवत्ता वाली निजी स्वास्थ्य सेवाओं को नियन्त्रित करने लगे तो छिपी मंशा को समझना कोई मुश्किल नहीं. हाल ही के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से यह साफ है कि देश की सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर किसी को विश्वास नहीं रहा.सभी पैसे और पहुन्च वाले या तो विदेश में इलाज कराते हैं अथवा निजी अस्पतालों में . 
अतः सरकार का निजी अस्पतालों पर नियंत्रण स्वभाविक है उनसे अपने लिये सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये। इसी लिये बडे अस्पतालों पर सरकार की खास मेहरबानी है.छोटे अस्पतालों में अपना इलाज नहीं कराना हैं उनको इस लिये उनसे वसूली का इन्तजाम कर रहे हैं.
जो सरकार मर रहे किसानों से कह रही है कि सरकार और भगवान के भरोसे न रहें वह मरीजों से भी चाहती है कि वे उनके भरोसे न रहें. सरकार खुद सन्सद की कैन्टीन में सस्ता भोजन खाती है और बेशर्मी से दूसरों से छूट छोडने को कहती है.सरकारी अस्पतालों में मरीज भगवान  भरोसे हैं और निजी में सेवायें सरकार के भरोसे. यह सरकार तो आपको भगवान के भरोसे भी नहीं रहने देना चाहती और उसक खुद का तो कोई भरोसा है ही नहीं.
 हमारा अपना भरोसा भी अब डगमगा रहा है.
         

मुकदमे

कंज़्यूमर और कृमिनल दोनों तरह के मुकदमों से चिकित्सक परेशान हैं । दोनों के पीछे उद्देश्य नर्सिंग होम से पैसे ऐंठना है।मांग अप्रत्याशित रूप से बहुत ज़्यादा होती है और कारण मरीज की मौत,काम्‍पलीकेशन , बड़ा बिल,मरीज के मन मुताबिक बीमारी का रिजल्ट न मिलना होता है। दोनों में मरीज के अतिरिक्त और लोगों को भी पैसे देने पड़ते हैं । पुलिस , इन्श्योरेंस , सी एम ओ और वकील।बदनामी,अखबार बाजी ,तोड़ फोड़ और मानसिक कष्ट अलग हैं।सबसे बड़ी हताशा का कारण है बिना गल्ती और कभी ऐसे लोगों द्वारा यह करना जो खास होते हैं और उनको खास ध्यान और खास छूट दी गयी होती है।
बचने के लिए किसी को भी खास व्यवहार और छूट न दें , अफसोस तो कम होगा।
पुलिस रिपोर्ट
अक्सर झूठ पर आधारित होती है और मरीज , पुलिस तथा सी एम ओ को पैसे दे कर लोग शांति खरीद लेते हैं।वरना परेशानियां लंबी खिंच जाती हैं।
बचने के लिए अपने इलाके की पुलिस से बना कर रखें और हमेशा फ़्री इलाज करें।सस्ता पड़ेगा।
क्वैक
इनके गलत कामों की बदनामी हमको झेलनी पड़ रही है।इनके कारण माहौल खराब हो गया है।हम में से कई इनको अपने स्वार्थ के लिए संरक्षण देते हैं।
बचना मुश्किल है।
प्रशासनिक भ्रष्टाचार
लगभग २ दर्जन से ज़्यादा सरकारी विभाग गिद्ध की नजर आप पर गडाए हैं। नर्सिंग होम वाले तो जैसे इनके लिए ही कमाते हैं खास कर छोटे।बड़ी झुँझलाहट होती है कि हम इनके और स्टाफ के लिए अपनी पूंजी लगा कर कोल्हू के बैल की तरह क्यों काम किए जाते हैं।
बचने के लिए अपना न बना कर दूसरे के में काम करें।
मार पीठ और तोड़ फोड़
इसे करने वाले पिछले आपके सारे अहसान भूल जाते हैं और आपको उनका किया बाकी पूरा जीवन याद रहता है।आप कभी इसके बाद नार्मल नहीं हो पाते।
बचने के लिए भगवान से रोज प्रार्थना करें और एसोसिएशन से बनाए रखें।
गैर जिम्मेदार मीडिया
मेडिकल प्रोफ़ेशन का सबसे ज्यादा बेड़ा गर्क इसी ने किया है। लापरवाही का ऐसा ढोल पीटा इन्होंने कि लोग सभी चिकित्सकों को लापरवाह मान पीट रहे हैं। मीडिया ने कभी सही तथ्य सामने नहीं रखे बस मिर्च मसाला लगाया।मरीज का भी बहुत अहित किया है इन्होने।
इससे बचने का कोइ उपाय नहीं है।
न्याय
चिकित्सकों को या तो अन्याय मिलता है अथवा न मिलने के सामान देरी से और बिना किसी कारण अच्छा पैसा ख़र्चा करने के बाद।इसने चिकित्सकों में काफी असंतोष पैदा किया है। निचली अदालतें खास कर चिकित्सकों के खिलाफ पूर्वाग्रह से फैसला देती रही हैं।
बचने के लिए फूंक फूंक कर इलाज करें पहले अपनी जान बचाएँ तब मरीज की।अपने केस को स्वयं देखें वकीलों पर न छोड़ दें।
कम फीस
चिकित्सकों की कमाई आज दूसरों से कम है और पढाई तथा रिस्क और मेहनत बहुत ज़्यादा। इसी लिए आज मेधावी बच्चे इस और नहीं आ रहे।इसके लिए चिकित्सकों में कई प्रकार और गलत प्रतियोगिता भी जिम्मेदार है।
बचना कठिन है । एकता है नहीं।प्रोफ़ेशनल जेलसी और अनफ़ेयर कम्पटीशन हम छोड़ नहीं सकते।
नगण्य चिकित्सक एकता
हमारे देश में अनेक प्रकार के चिकित्सक हैं और उनकी समस्याएं हैं लेकिन अलग प्रकार की। वे अपनी समस्याओं के लिए कभी कभी आवाज उठाते भी हैं पर उसमें दम नहीं होता।एक वर्ग की लड़ाई में दूसरे कभी साथ नहीं आते बल्कि उनके खिलाफ भी काम करते हैं।इसी लिए काम चलता रहता है मरीजों का और सरकार का भी।फिर कोई क्यों सुने डॉक्टरों की।आज़ जिस पर पड़ी है वह भुगते हम क्यों मरीज जाने दें।और बारी बारी से सब भुगत रहे हैं।
चिकित्सकों की तभी सुनी जायेगी जब सारे डॉक्टरों की आवाज एक होगी चाहे सरकारी हो , प्राइवेट हो ,कारपोरेट हो,मिलेटरी हो,मेडिकल कॉलेज हे,एम्स हो अथवा कोइ और।
अनैतिक चिकित्सक
इनकी भी आज कोइ कमी नहीं है।इनके कारण दूसरे या तो अनैतिक होने पर मजबूर हो रहे हैं मार्केट में डटे रहने के लिए अथवा कुंठा का शिकार हो रहे हैं।कोई कुछ कहे या किसी को बुरा लगे , है तो मार्केट ही। प्रोफ़ेशन और वह भी नोबल ,रहा होगा कभी चरक सुश्रुत के जमाने में।
सरकार से इसे रोकने की हम अपेक्षा करते रहे हैं ।इनको केवल हम ही रोक सकते हैं अपने संगठन से। लेकिन उतना साहस और उतनी एकता कहाँ से लाएं।फिर जो हो रहा है उसके लिए किसी और को क्यों खोसें ।