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पी एन डी टी से परेशान
कन्‍या भ्रूण और डाक्टर दोनों पी एन डी टी से परेशान हैं। कन्या भ्रूण को इस कानून से घोर निराशा हुई है। उसकी सुरक्षा के दावे नेताओं के वायदों की तरह दिवास्वप्न ही रह गये।ऐसा मूल कारण की अनदेखी कर इधर उधर हंटर फटकारने के कारण है।
सारा समाज और सरकार का जोर डॉक्टरों पर है।इलाहाबाद में नवीनीकरण रूका है तो पूना में डॉक्टरों को कागज़ी कार्यवाही पूरी न होने पर जेल की सजा दे दी गयी है। कोई बोर्ड लगाने पर जोर दे रहा है तो कहीं अल्ट्रासाउंड कराने वाली औरतों की फोटो खींच कर रखना जरूरी किया जा रहा है।
दो दशक से अधिक बीत जाने पर कानून से क्या मिला है। लिंग अनुपात अभी भी मर्दानगी दिखा रहा है।कान्हा जी हमारे हों और राधा औरों की।लिंग निर्धारित कराना महँगा हो गया है ।रिस्क और रिश्वत दोनों जो बढ़ गये हैं।करने और रोकने के लिए जिम्मेदार दोनों की पौबारह है।वेश्यावृत्ति, शराब, दहेज़ क्या रोका जा सका है।मियां बीबी राजी तो कौन बताए दोषी कौन।
चिकित्सक हल्कान हैं। पी एन डी टी अल्ट्रासाउंड के सीने पर मूंग दल रहा है।मशीनें सील हो रही हैं , छापे पड़ रहे हैं ,स्त्री रोग विशेषज्ञ डरी हुइ हैं। कानून के कड़े प्रावधान लाए जा रहे हैं । संशोधनों की बाढ़ आ गयी है।डाक्टर अल्ट्रासाउंड और अबार्शन से भयभीत हैं। सबका नुक्सान हो रहा है सिवाय दोषियों के।
कब हम समझेंगे कि लकीर पीटने से शेर का कुछ नहीं बिगड़ने वाला।